Hindi Quote in Poem by Aftab Alam Sheikh

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मैं अँधेरे का चिराग था ..
चाँद की फ़र्ज़ी चमक नहीं ..
उसपे वह हुकूक से बैठा हुआ दाग था ..
मैं अँधेरे का चिराग था ...
मैं अंदर से मशाल था ..
बाहर से मलाल था ..
वह गीले तकिये आसुओं के ..
वह मेरा ही एक हाल था...
फिर उठा फ़क़त वही से ...
जहां खो गया था खुद की तलाश में ..
फिर जो लिया सफर तो डरा नहीं किसी भी खराश से ....
मैं बूँद था या था लहर ..
मैं था सुकून या था पहर ...
मैं एक सच था या झूठ था ...
या एक बढ़ता हुआ युथ था ..
वह जो अभी हैं क्या वह मेरे अंदर था ..
क्या सच में मैं क़तरा नहीं समंदर था..
मैं पुराने ज़ख्मो की आह था ...
या नए सपनों की चाह था ..
मैं उखड़ा हुआ वर्क (पेज) था ..
या था पूरी एक किताब ..
मैं रात का एक जुगनू था ...
या था पूरा एक आफ़ताब (सूर्य) ..
मैं राख था या आग था ...
मैं राख था या आग था ....
मैं अँधेरे का चिराग था ...
मई अँधेरे का चीराग था ....
(#आफताब आलम ...)

Hindi Poem by Aftab Alam Sheikh : 111873383
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