सुकून भी कितना छोटा शब्द होता है।
सुरज के उगने से जितना सुकून नहीं मिलता वो सुकून सूरज के ढलते ही रजाई में मिल जाता है।
किसी जान पहचान वालो से यह कह, मैं ठीक हु की जगह अपनी पूरी जिंदगी एक अनजान के सामने खोल देने में कितना सुकून मिलता है।
जो कभी मुस्कुराता भी नहीं उसकी मुस्कान देख दिल को कितना सुकून मिलता है।
कोई बुजुर्ग सिर पर हाथ फेर दे तो कितना सुकून मिलता है।
ऐसे कही सुकून की मायने होते है, लोगो के जहन में लेकिन उसकी कोई खास परिभाषा नहीं होती।
पर इतने से ही मन भर जाता है की यह किसी का मोहताज़ नहीं होता।
एक आदमी के सर्वशक्तिमान होने के गर्व को चूर देने वाला शब्द होता सुकून।
और एक बात जो इसकी खास होती है,
जहा से हमे तलाश नही होती इसकी कही बार उसी के छाव में हमे यह मुस्कुराता हुआ मिल जाता है।
है ना! कितना छोटा शब्द सुकून?