दृश्य इतना ख़ूबसूरत लगा कि मैंने कार में बैठे बैठे ही पहले यह फ़ोटो खींचा और फिर भावाभिव्यक्ति ने रच डाली यह छोटी सी कविता।- - -
सुनहरा आँचल
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(रचनाकार - प्रमिला कौशिक)
तारकोल से यह बना रास्ता
लगता था काला साया सा।
सूरज ने अपनी किरणों से
आँचल सुनहरा फैलाया सा।
अब तो प्रतीत होता है ऐसा
ज्यों नदी बह रही सोने की।
सूरज की प्यारी धरती की हो
ज्यों चाह पिया में खोने की।
सूरज का सुंदर मुखड़ा देखो
निहार धरा को कैसे मुस्काए है।
नज़रों से नज़रें मिलने पर
स्मित वसुंधरा कैसे लजाए है।