बेशकीमती जिंदगी देने वालों को तूने,
चंद कांँच के टुकड़ों के लिए बेच दिया।।
इसीलिए,
निसर्ग(प्रकृति) ने अपना भयानक रूप तुझे दिखा दिया।
सांँसे देकर अपनी जिसने तेरी सांँसो को बचाया था,
देख कर तूने उसको आरि का जख्म,खुद को सांँसो का मोहताज बना लिया।।
मुट्ठी भर जद का आयाम पाकर अपने हाथ में
अपने सिर पर सरताज सजाया था,
जरा सा क्या मिजाज बदला कुदरत ने अपना ,
तेरी तासीर को वास्तविकता का आईना दिखा दिया।
कांच के टुकड़ों के लिए तूने अपनी जिंदगी को बेच दिया।।
स्वाति सिंह साहिबा।।