सवेरे सवेरे दिमाग फ्रेश करते यूं,
कुछ सोचा
चलो कुछ लिखते है यूं।
🌻☺️

सुबह को पहली किरण होती कुछ यूं,
मोबाइल हाथ में लेते यूं,
मेसेज के बिना हाल चाल न चलता यूं,
फिर बचपन की याद इतनी सताए क्यूं?

कॉलेज की एक किताब लेकर निकलते यूं,
स्टाइल, फैशन और स्वैग का ठाठ लेकर चलते यूं,
फिर बचपन की याद इतनी सताए क्यूं?

बेस्टिस, लव और जवानी का तड़का हररोज होता यूं,
फिर बचपन की याद इतनी सताए क्यूं?

सुबह सुबह क्लास में गानों से गूंजते लब यूं,
फिर बचपन की याद इतनी सताए क्यूं?

वादों से भरे नगमे और प्यार से भरे लम्हें होते यूं,
फिर बचपन की याद इतनी सताए क्यूं?

जवानी और जिम्मेदारी की तथाकथित राहों में खोए कुछ यूं,
फिर बचपन की याद इतनी सताए क्यूं?

ब्रेकअप्स, पैचअप, यारी, दोस्ती में होते मशगूल यूं,
फिर बचपन की याद इतनी सताए क्यूं?

वक्त बदला, वक्त ने बदला,
दुनिया देखने निकले कदम ठोकर खाकर संभले यूं,
वो याद, वो यारी,
वो पल, वो संस्मरण,
वो माँ का दुलार, वो पिता की फटकार,
वो भोलेपन का विश्वास, वो बचपन का प्यार,
वो शिक्षक की शिक्षा, वो क्लास की महत्ता,
प्रार्थना की शांति, वो बड़ी सी स्कुलबेग हमारी,
वो दोस्ती का प्यार, वो एक दूसरे का साथ,
वो वादा जो जिंदगीभर निभाना,
वो खुशी के आंसू, वो बिछड़ने के आंसू,
जाना जिंदगी का वास्तविक रूप यूं,
देर हो गई सा अहसास हररोज यूं,
शायद इसीलिए
बचपन की याद इतनी सताए यूं।

- Kirtipalsinh Gohil

Hindi Poem by Kirtipalsinh Gohil : 111696353
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