●हाजत-रवा
ए मेरी इश्क़-ए-आलम मोहब्बत-ए-हाज़त-रवा
कुछ न कर सके तो मरहम कर मुझे ग्यारह-दवा..।
तू ग़ैर कर या ख़ैर कर मुझे राहतों की दे हवा
रिहा-ओ-ख़ाक हों गया तुं याद कर मुझे कर जवाँ..।
सितमगर ज़रा सोचले मिट-मर जाऊं ये कर दुवा
हों कहीं शाम औऱ रातभर आंखों से तु अश्कों गवाँ..।
हैं ज़ायका मिला मुझे फ़िकर तेरी फ़ुरकत-ए-तवा
तू बना फ़िरसे हैं फ़रेब मुझे आम भी अब हैं कवा..।
क्यूँ मुद्दतों पे मिला नहीं वॉदा किया फ़िर रु-सवा
थी महफ़िलें और "काफ़िया" मोहब्बत-ए-हाज़त-रवा..।
#TheUntoldकाफ़िया
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