ध्यान...
जानने की इच्छा से रहित हो कर केवल जानने मात्र का भाव...
कोई संकल्प-विकल्प न हो के केवल “मैं हूँ“ का होश अविरत बना रहें...
अत्यधिक प्रशांति हदय में स्थिर रह कर...
स्थूल एवं सूक्ष्मातिसूक्ष्म भावों व क्रियाओ में बहे बिना उसके प्रति पूर्णत: जागृति ...
निमेष-उन्मेष रहित मंद व अदृश्य कुंभक सहित श्वास...
अ-मनी एवं गहन मौन में स्थिर अपनी जागृत उपस्थिति केवल....
प्रयत्न शून्य चैतन्य की ऊर्जा मात्र...
चलित एवं कंपन रहित चेतना व आत्मा का पूर्ण बोध....
कोई भी कर्म अथवा भाव का अविरोध व साक्षी मात्र...
भाव शून्य प्रेम पूर्ण दर्शन केवल...
अहंकार शून्य “हूँ” मात्र की स्मृति...
जो कुछ होता है उसमें भाव-आसक्ति रहित केवल स्वीकृति...केवल द्रष्टा...स्वीकार नहीं...
भीतर-बहार न हो कर्तृत्व और न हो भोक्तृत्व ...
हो केवल शून्य...शून्य...शून्य...