मैं गुड़िया इस आंगन की
मैं गुड़िया इस आंगन की ।
मैं खेतों की हरियाली ,
मैं अमृत की एक प्याली
मैं धरती की साथी हूं ,
और सूरज की हूं लाली
मैं तपते दिनकर की ठंडक
और बूंदे हूं सावन की ।
मैं गुड़िया इस आंगन की
मैं गुड़िया इस आंगन की ।
मुझे मारो ना आे जगवाले ,
आई हूं मैं तुझे बचाने
मैं सृष्टि की ऐसी गुण हूं ,
जिससे बनते हैं तुम जैसे
मैं गर खत्म हुई तो ,
क्या होगी तेरे पहचान की ।
मैं गुड़िया इस आंगन की
मैं गुड़िया इस आंगन की ।