है जिस्म के आगे भी कुछ,
पर हवस भरी निगाहों से
जिस्म के आगे ना कोई संसार दिखता है।
इन्सान तो दिखता है
पर सब में हवस का अंबार दिखता है,
के अब सोच में सबके होता बलात्कार दिखता है
हर रूह होता तार-तार दिखता है,
अब रूह की लाशों का कतार दिखता है ।।
-----अमित RAJ