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“हिन्दी विश्व मे तीसरी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है”
हिन्दी इतनी भी बिचारी या बिंदी या गर्त में जाने वाली अवस्था में नहीं है जितना आज सुबह से विभिन्न पोस्ट और कविताओं में देख रही हूँ।
विकिपीडिया के अनुसार-
चीनी भाषा मैन्डरिन के बाद विश्व में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा हिन्दी है। किन्तु एथनॉलोग (Ethnologue) के अनुसार हिन्दी विश्व की तीसरी सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है। विश्व आर्थिक मंच की गणना के अनुसार यह विश्व की दस शक्तिशाली भाषाओं में से एक है।
यह सही है कि अंग्रेजी बोलने वालों की तादाद बहुत बढ़ी है पर इसका मतलब ये नहीं है कि हिन्दी समझने-बोलने वालों की घट गई है। देश में ही अक्सर लोग अपनी क्षेत्रीय भाषा के साथ साथ हिन्दी भी समझते बोलते हैं। अंग्रेजी का बहुत दबाव है क्यूंकि ये एक अंतर्राष्ट्रीय भाषा है और आधिकारिक भी। परंतु हिन्दी ने सहर्ष बाहें फैला कर अंग्रेजी के शब्दों को अपना, खुद को समृद्ध और लचीला बनाए रखा है। आज मोबाईल और कंप्युटर पर हिन्दी टायपिंग की सुविधा से हिन्दी लिखने वालों की भी संख्या बढ़ ही रही है।
भारत में हम विमानों, होटल, दुकान, काल सेंटर, टेलीफोन ऑपरेटर या कोई दफ्तर में फर्राटेदार अंग्रेजी बोलने वालों को टोक कर हिन्दी में बातचीत करने के लिए कह सकते हैं। इसमें हिन्दी की अस्मिता को कोई ठेस लगने वाली बात ही नहीं है। हिन्दी में बात करने के लिए दो दबाए, इससे हिन्दी कतई कमजोर साबित नहीं होती है। और ये बात भी एक कही - सुनाई ही है, हमेशा सच नहीं।
हिन्दी दिवस मनाने का कारण
स्रोत- विकिपीडिया
स्वतंत्र भारत की राष्ट्रभाषा के प्रश्न पर 14 सितम्बर 1949 को काफी विचार-विमर्श के बाद यह निर्णय लिया गया जो भारतीय संविधान के भाग 17 के अध्याय की अनुच्छेद 343(1) में इस प्रकार वर्णित है:
संघ की राष्ट्रभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी। संघ के राजकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाले अंकों का रूप अंतर्राष्ट्रीय रूप होगा।
यह निर्णय 14 सितम्बर को लिया गया, इसी दिन हिन्दी के मूर्धन्य साहित्यकार व्यौहार राजेन्द्र सिंहा का 50-वां जन्मदिन था, इस कारण हिन्दी दिवस के लिए इस दिन को श्रेष्ठ माना गया था। हालांकि जब राष्ट्रभाषा के रूप में इसे चुना गया और लागू किया गया तो गैर-हिन्दी भाषी राज्य के लोग इसका विरोध करने लगे और अंग्रेज़ी को भी राजभाषा का दर्जा देना पड़ा।