पूर्णिमा आनन्द रस से आत्म विभोर हो उठी। दोनो हाथोँ से गालो को थामें झूम उठी। अनैतिक कहा जाने वाला सम्बन्ध, भत्सर्ना के रंग सब फीके लग रहे थे। वो विनोद से लिपट गई। आलिंगन पाश के लिये तड़प उठी। समाज की रुढ़ीवादी मान्यताएं इस विराट प्रेम के समक्ष तुच्छ सी लग रही थीं। 'विनोद मुझे लाल रंग के सिंदूर से क्या लेना...?परिपक्वता, आत्म सम्मान और सानिध्य है हमारे पास। जी लेंगे हम,
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