कविता : पता ही न चला
कब मेरे हर पल को खास बना दिया पता ही न चला
कब मुझे अपना आभास बना दिया पता ही न चला
कब मेरे सपनों में समा गई पता ही न चला
कब मेरे गमो को दबा गई पता ही न चला
कब मेरे दिल के बगीचे को चहका गई पता ही न चला
कब मेरी ज़िंदगी को महका गई पता न चला
कब वो मेरे दिल की हसरत बन गई पता ही न चला
कब वो मेरी ज़िन्दगी की जरूरत बन गई पता ही न चला
पर अब यह पता है कि तुम हो तो में हु।
तुम्हारे बगैर में कुछ भी नही हु।
Chirag dhanki