कर के कुछ भी हम कार्य नही कर पाएंगे,
इस तरह हम जो प्रकृति को खिलवाड़ बनाएंगे,
कोरोना से तो बच जाएंगे साहब,
मगर मन के वायरस से कैसे पार पाएंगे...
जिस तरह हवा सब को बराबर लगती है तो,
उसी तरह अगर हम सब को बराबर कर पाएंगे,
तो कुछ समय के लिए ही सही साहब,
पर समाज मे कही न कही राष्ट्रीयता निभाएंगे.........
अगर हम स्वयं खुश नही हो सकते
तो क्या कभी किसी और को खुश कर पाएंगे
तो एक बार फिर हम मानते है साहब
की खुदी से दुनिया की तकदीर बदल पाएंगे.....