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07/07/2020
"इंतज़ार-ऐतबार-इस्क-मंजिल"
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इंतज़ार-ए-आलम भी क्या कमाल की है ए-गालिब !!
कभी वो हमारा तो कभी वो हमारे दिल से निकले हुए अल्फाजो का करते है।।
ऐतबार-ए-जज़्बात भी क्या कमाल के है ए-गालिब !!
जज़्बात-ए-आर्जू कभी अल्फ़ाजो से तो कभी जज़्बात-ए-अस्को से बयान करते है।।
दर्द-ए-इस्क भी क्या कमाल की है ए-गालिब!!
हसद-ए-जज़्बात कभी उन की वजह से तो कभी उन से जुड़े हुवे शख्स से होती है।
मुकाम-ए-मंजिल भी क्या कमाल की है ए-गालिब।
दुवा-ए-तहज़्जुद से ले कर दुवा-ए-तरावीह तक इंशाअल्लाह मिल ही जाते है।
Alfaz-E-Suhana ✍️✍️