डायरी में रखा
वो सूखा लाल गुलाब
आज भी
तुम्हारे मोहब्बत को
बयां कर रहा है
तुम्हारे अहसासों की रवानी
मेरे लहू में तैर रही है
माना कि हम दूर हैं
हालातों से मजबूर हैं
पर तुम्हारे ख्यालों से
मेरे विचार बनते हैं
जिनमें उलझ जाती हूं मैं
फिर से सुलझने के लिए
अक्सर ही गुनगुना लेती हूं
उन हसीन लम्हों को
संग जो गुजारे थे
जो कभी बस हमारे थे
कॉलेज की कैंटीन में
कच्चे गलियारों में
पेड़ों की छांव में
छत की मुंडेर पर....
शिवानी वर्मा
"शांतिनिकेतन"