तो आज की मेरी कविता आजकल कि हालातों से ही हैं।
तो शुरूआत करते हैं इन दिनों किसी की जिंदगी घर पर तो किसी कि अस्पताल मैं गुजर रही होगीं,
चौराहे पर खड़ा होगा वर्दी पहनकर निगाहें उसकी आने जाने वालों पर पड़ी होगीं।
तंग हैं कुछ वहीं चेहरे वहीं दिवारें देखकर तो किसी कि कब्र बिना फूलों कि दबी हुई हैं,
लाजवाब पकवान पक रहें हैं रसोईं मैं, तो किसी कि थाली बस पाणी से ही भरी होगी।
सुहाना मौसम आसमान से पौछाद बूँदो की तो किसान केलिए बारिष उसकी आँखों से निकली होगी कोई जान की किमत बिना समझें इधर उधर घूम रहें हैं।
तो किसी ने अपनी पूरी जान दवाई ढूँढने में लगाई होगी।
मुक्दत का खेल मानों या वक्त ही कों मानों ये पल ये समय किसी के लिए # old memories तो किसी के लिए बस तबाही होगी।
🖋 prajakta