वक़्त गुज़र गया… ना जाने दिल पर कैसी अजीब दास्तानें लिखकर.....
अब वो गुज़रा वक़्त कहां से लाऊं वापस,
उन यादों को कैसे भुलाऊं..
वक़्त तो गैर है.. चला गया…
तुम तो अपने हो ठहर जाओ..ठहर जाओ
फ़ुरसत तो इतनी मुझे भी नहीं..के सोंच सकूं तुम्हें,
पर.. करूं क्या... मशरूफ भी तो तुम्हारी यादों में ही हूं
सोंचती हूं कहीं दफ़न कर दूं तुम्हारी यादों को..कहीं दूर खुद से
पर तलाशती हूं तो मेरे दिल से हसीं कोई जगह ही नहीं मिलती,
हवाओं से हैं यादें तुम्हारी, रात- दिन ठहरती ही नहीं
इतना तो मेरा साया भी मेरे साथ नहीं रहता,
जितनी तुम्हारी यादें घर कर चुकी हैं मुझमें.....
लोग ढूंढ़ते हैं अब मुझमें मुझे पर,
मेरी मिलते हो तुम मेरी हर बात में....
आ जाओ… एक रोज़ मिलने मुझसे,
आकर अपनी यादें ले जाओ..और...
मुझे मुझको लौटा जाओ.......