निगल जाते अजगर की तरह
तो शायद दर्द न होता प्यारे,,
पर दीमक बन जो ढाहा है कहर
वो कमर तोड़ गई इस देश की,
कुतर कुतर कर धीरे धीरे
मीठा जहर बन पान कराया,
गंगा जी बोल बोल कर तूने
दरिया में स्नान करवाया,
चुपड़ी घी से रोटी छीन कर
मासूम का किया दीवाला
हे दीमक तूने इस धरती का ,
क्या हालत कर डाला ,
बाहर से हरा भरा है,
देश मेरा खुशहाल है,
अंदर पीड़ा अवसाद भरा है
दीमक जी का जंजाल है ।
शैल.. गोरखपुरी