ये क्या अज्ञात है मुझमें....जो दूर उस आकाश में करोड़ों प्रकाशवर्ष दूर, उस मध्यम टिमटिमाते तारे को देखकर छलक जाता हूँ अचानक, इतने स्पंदन के साथ कि..... ठगा सा पाता हूँ मैं खुद को..उससे दूर होकर..जैसे वो मेरा कोई अतरंग हो.. जिसे मैंने खोया ,अपनी भूल से.. सदियों के लिए..!!