मैं खुद को दीवार पर लिखते जा रहा हूं, दीवार जो लिख-लिखकर कभी भरेगी नहीं लेकिन मुझे रोज़ ख़ाली करती रहेगी,जब वृद्ध हो जाऊंगा और हाथ कंपकपाने लगेंगे,जब लिख नहीं पाऊंगा.. तब तुम्हें स्मरण करके मन की सारी बातें तुमसे कहा करूँगा,तुम जीवन-संगिनी हो लेकिन तुम मेरे जीवन में नहीं हो।