घुड़दौड़!!
इस प्रतिस्पर्धा की घुडदौड में
मैं हमेशा हार जाती हूंँ।
ला नहीं पाती मैं तीव्र
भावनाओं का ज्वार।
कर नहीं पाती मै ऐसा
विनिमय व्यापार,
खुद को ऐसी परिस्थितियों में सदा
गंवार पाती हूंँ।
इस भावनाओं की घुडदौड मै
हमेशा हार जाती हूंँ।
बो नहीं पाती मै बीज
संभावनाओ के
सदा ही ह्दय के आगे
खुद को लाचार पाती हूंँ।
इस नित नयी घुडदौड मे
मै हमेशा हार जाती हूंँ।
झपकाओ जो पलक युग बीत
जाते है।
हम रहे वही सदा लोग जीत जाते है।
चलायमान सब यहाँ,
स्थावर मै हो जाती हूंँ।
जाने क्यों सब लगते खरगोश
कछुआ मैं हो जाती हूंँ।
इस नित नयी घुडदौड में
मै हमेशा हार जाती हूंँ।
कविता नागर