#काव्योत्सव_प्रेरणादायक_कविता
एसिड अटैक
हाँ तुम मर्द कहलाते
क्योंकि तुम परे हो
मानवता के अर्थ से
दरिंदगी से भरे हुए..
तुमको तो मिला है
विरासत में अधिकार
खेलने का कभी भी
हमारी भावनाओं से..
मर्दानगी आहत होती
तुम्हारी सदा से ही
जरा जरा सी बात पे
वंचित रखा गया तुम्हे
सदा स्नेह के पाठ से..
पाना ही सीखा तुमने
मान मनुहार नही तो
सिर्फ अधिकार से।
देह नही जली मेरी
रूह को जला दिया
जिस्म पा नही सके
चेहरा झुलसा दिया..
तड़प रही दिन रात
अस्पताल में पड़े हुए
माँ बाप बिलखते मेरी
हालत को देखते हुए..
जीत सकोगे न कभी
मन तुम दुष्कृत्यों से
भुगतोगे सजा बस
मेरी ही बद्दुआ से..
माफ ना करेगा खुदा
कभी तुम्हे भूले से
नरक में भी न मिलेगी
जगह ऐसे दरिंदे को....सीमा भाटिया