#काव्योत्सव_प्रेमविषयक_कविता
वो जो मेरे साथ चला
वो जो मेरे साथ चला
वो तो मेरा साया था
ताउम्र की खुशियों का
फख्त इक सरमाया था।
वजूद में ढल गया मेरे
जो अरुणिमा सी बिखेरे
सूर्य की रोशनी बनकर
अंधेरों को दूर हटाया था।
अस्तित्व विहीन जिंदगी का
रहबर बन गया जाने कब
मेरी अधूरी हसरतों को
फिर से जिसने जगाया था।
नाम क्या बताऊँ उसका
वो तो एहसास बन गया
बस महसूस ही किया जो
रूह में मेरी ही समाया था।
मीरा का मोहन कहूँ या
राम हैं वो सीया के, बस
इतना ही जानूँ मैं पगली
वो दुनिया बन आया था।.. सीमा भाटिया