#KAVYOTSAV
विषय - भावनाप्रधान
मैने जब आंखे खोली में अबोध थी
क्योंकि चाह लड़के की थी
शायद में अपराधी भी थी
पर मैं लड़की थी,
थोड़ी बेरुखी तो थी पर
सबने फिर भी प्यार से देखा
मुझे गोद में उठाया
गले से लगाया
बेशक में मुक थी
पर देख सकती थी
महसूस कर सकती थी
वो बदलती खुशी,
वो बदलते नजरिए
वो प्यार जो
किसी और के लिए था.
बेशक सबने बहुत लाड किया
पापा की परी भी बनी माँ की लाडली भी थी
पर कटाक्ष लड़की होने के
अपनों को वो ममता भी ना रोक पायी..
यहां वहां नहीं टहलना
प्रतिउत्तर ना करना
लड़की को क्या क्या नही
करना चाहिए मैं समझने में असमर्थ थी
मेरी कई ख्वाहिशों पर बंदीश थी
पर मैं जिंदा थी
बेशक उन ख्वाहिशों के बिना भी
पर शायद मुझे खुशी मिलती
उनके पूरा होने पर
हो सकता है में खुश होती अपने लड़की होने पर
मै अनजान थी कई बहेलिए जाल बिछाए बैठे हैं
मैं तो बस उड़ना चाहती थी
हां सबने मुझे पंख भी दिए
और उड़ने भी दिया
पर मेरी उड़ानों की सरहदें थी
सीमित दायरे थे
उड़ते उड़ते जब ज़ाल में उलझी
तो कटाक्ष मेरे लड़की होने पर
अपनों को वो ममता भी ना रोक पायी
शायद में अपराधी थी
मैं लड़की थी..
ससुराल भी कुछ अलग नहीं था
सबने प्यार तो बहुत दिया पर
एक बहु को जैसा
बहू क्या क्या नहीं कर सकती
अब तक मैं ये समझ गई थी.
छोटी छोटी खुशियां मेरी
जो मायके में भी पूरी नहीं हो पाई
अब भी नहीं हो सकती थी
मैं अपराधी जो थी
मैं लड़की जो थी
सभी जानते है कि लड़की आजकल बाहर
भी कामकाजी है पैसे भी कमा सकती है
घर खर्च भी उठा सकती है
पर सब ये भी जानते है कि खाना केवल
बहू बनाती है
हर गलती जिम्मेदारी भी उसी की है
थकी हुई होने पर उसे थकी हूं कहने का अधिकार नही है
बीमार होने पर उसे आराम करने का अधिकार नही है
मन होने पर उसे देर से उठने का अधिकार नहीं है
अपनी मर्ज़ी से बाहर अकेले घूमने का अधिकार नही है
अपने घर की मैं अपनी ना हो सकी
और पराए घर ने अपना ना सका
हां मै अपराधी हूं
हां मैं लड़की हूं..