हम सोचते हैं कि कल शायद
सब ठीक हो जाए
उम्मीद बांधे रखते हैं
कि कल आज से बेहतर ही होगा
इस बेहतर कल की
उम्मीद का दामन थामे
खप गई जाने कितनी पीढ़ियां
यह तो अच्छा है कि इंसान
थोपे हुए हमलों को
ठेंगा दिखाकर भी
देख लेता है सपने
एक बेहतर कल के सपने
मज़बूत किलों के बंद कमरों में
ज़मीनी-खुदा इस निष्कर्ष पर
पहुंच ही जाते हैं कि बहुत जब्बर है
इंसान की जिजीविषा
बहुत चिम्मड़ है इंसान की खाल
और किले की हिफ़ाज़त के लिए
ख़ामोश और मुस्तैद इंसानों की
ज़रूरत हमेशा बनी रहेगी।।।।