एक लाश के उपर रोते हुए
देखा जब इंसानों को
समझा शब्द जीवन का तब
सारे शरीर है एक से वो
नहीं रहा अब किसी मैं
कैद बाकियों मैं जो
जीवन मरण नहीं उसका
मन मैं ही बसा संसार, देखो
जो समझो, तो पूछो
कौन गया सरीर से
की जीवित हो कर क्यू
एक लाश को देख रहा है रो
ना स्वास है, ना मन है
ना दृष्टि है, ना दास्तां वो
जीवन मरण तो खेल है बस
यह विश्वास ही संसार है देखो