बैठा जाता हुई मीटी पे अकसर कुयूकी मुँहजे मेरी औकाद अच्छी लगती है।
में समंदर से सीख है जीने का तरीका। चुप चपसे बहाना ओर अपनी मौज में रह ना।
एक घड़ी खरीद कर हाथ मे क्या बाध ली मे ने ।
ये वक्त तो पीछे ही पड़ गया मेरे।
सोचा था एक धर बनकर आराम से बैठु गया ।
पर घर की ज़रूरतो ने मुसाफिर बना डाला।
एक सवेरा था मुस्कुरा उठा करते थे ।
एक तो बिना मुस्कुरा ये ही शाम हो जाती है।
लोगों कहते है मुस्कुराते बोहत है आप । उनको क्या बातये अपना दर्द छुपा ते ।
लापरवा हु में लेकिन सब की परवा करता हु ।
मेधी मेधी से धड़ी पहली मेने पर ये वक्त न चला में हिसाब से।