#kavyotav
** गांव **
गांव की सुबह की शीतल शांत पवन
नवजात अग्निशिखा सी समेटे तपन
बालहंस की मनमोहनी लुभावनी सूरत
शिखर पर बने शिवालय में सजी मूरत
बाबा का तपोवन पल पल याद आता है
जब कंक्रीट का जंगल नश्तर चुभाता है।
मखमली घास के बिछोने पर बीता बचपना
चूल्हे में आग सुलगाती अम्मा का डांटना
शैतानी करने पर बापू का सिंह सा गुर्राना
दादा का चिल्लाना, डरावनी कहानी सुनाना
दादी को सताना पल पल याद आता है
जब कंक्रीट का जंगल नश्तर चुभाता है।
सुख दुख, दुर्योग वियोग से बेखबर यौवन
तुनक मिजाजी, अल्हड़ अलबेलापन, बांकपन
पनघट पथ पर चंचल गोरी का आना
जीवंत संगमरमरी मूरत का दिल में समाना
ढेरों सपने सजाना पल पल याद आता है
जब कंक्रीट का जंगल नश्तर चुभाता है।
ग्वाले का पीछा करते, चिड़ाते नन्हे शैतान
घुंघरू बजाती, धूल उड़ाती बैलगाड़ी की शान
सैंकड़ों कोस की पहचान समान, अगाध प्यार
निष्कपट मधुर लोकाचार, उच्च संस्कार
परस्पर चिंतन पल पल याद आता है
जब कंक्रीट का जंगल नश्तर चुभाता है।
पीपल की ठंडी छांव में सजा रंगमंच
हुक्के का दम भरते, मसलों पर बतियाते पंच
हरिए का झोंपड़े, दिलावर का ऊंचा मकान
पुष्प से खिले, मिट्टी सने किसानों की मुस्कान
हर खेत खलिहान पल पल याद आता है
जब कंक्रीट का जंगल नश्तर चुभाता है।
दूर दूर तक फैला पीली सरसों का मैदान
गुनगुनाते रंग बिरंगे कीट भंवरों का गान
आम, जामुन के पेडों की टहनियां मापना
नाचते मस्त मयूर का आहट पाकर भागना
नदिया का छोर पल पल याद आता है
जब कंक्रीट का जंगल नश्तर चुभाता है।
सांझ ढले पक्षियों का कतारबद्ध लौट जाना
दूर क्षितिज का मुस्कुराते हुए पास बुलाना
छत पर चढ़ कर सप्तऋषि, व्याध को ढूंढना
सितारे गिनने की शर्त लगाना, हार जाना
गांव में बीता पल पल याद आता है
जब कंक्रीट का जंगल नश्तर चुभाता है।
© विनोद ध्राब्याल राही