मैं और मेरे अह्सास
ओस
उम्मीदों की ओस से जिन्दगी का शज़र सजाये रखा हैं l
साँसों का सफ़र पूरा करने को हौंसला बनाये रखा हैं l
मुलाकात का वादा किया है तो अभी तक जारी है तो l
इंतजार में बड़े अरमान से मेहंदी को हाथों में लगाये रखा हैं ll
"सखी"
डो. दर्शिता बाबूभाई शाह"सखी"