कबीरदास के कुछ प्रसिद्ध दोहे ये रहे:
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय.
धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय.
चिंता ऐसी डाकिनी, काट कलेजा खाए.
साईं इतना दीजिए, जा मे कुटुम समाय.
गुरु गोविंद दोउ खड़े, काके लागूं पांय.
ऐसी वाणी बोलिए मन का आप खोए,
औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए.
दुख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे, दुख काहे को होय.
हर प्राणी को अपनी वाणी
इतनी मधुर रखनी चाहिए की
स्वयं तो उसका मन शीतल हो ही
जो उसकी बात सुन रहा है
उसका मन भी शीतल हो.
वे लोग अंधे और मूर्ख हैं जो
गुरु की महिमा को नहीं समझ पाते.
अगर ईश्वर उठ जाए तो गुरु का सहारा है
लेकिन अगर गुरु रूठ जाए तो दुनिया में
कहानी कोई सहारा नहीं.
कबीरदास के दोहों का मतलब:
बुरा देखने जाते हैं, तो बुरा नहीं मिलता.
धीरे-धीरे सब कुछ हो जाता है.
चिंता एक ऐसी डाकिनी है
जो कलेजा खा जाती है.
भगवान से इतना मांगना चाहिए कि
परिवार का जीवन-यापन आसानी से हो जाए.
🙏
- Umakant