मैं और मेरे अह्सास
ताउम्र वक्त की रफ़्तार साथ कदम मिलाकर चलते रहे हैं l
जिस तरह चाहा ख़ुदा ने उस तरह ज़िंदगीभर पलते रहे हैं ll
सभी झंझट से दूर रहकर साथ साथ चलना चाहते हैं तो l
दिन को रात कहने को बोले तो बिना झिझक कहते रहे हैं ll
सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह