कभी कभी लगता है पत्थरो की बस्ती में आ गए,
जो लगाए थे मोहब्बत के बाग, वो शक के
कीड़े खा गए,
बेबस और बेनूर हो गई अब आंखे,
आंखो में आंसू सुख कर खून के धार आ गए,,
कभी कभी लगता है पत्थरो की बस्ती में आ गए,
तमीज और तहजीब की विरासत खो गई,
बोलना सिखाया था जिन्हें उन्हे अब कितनी बदजुबानी आ गई,
कभी कभी लगता है पत्थरो की बस्ती में आ गए,
अपनो के बीच आज अजनबी हो गए ,
सारे अपने ना जाने कहां खो गए,
तरसते है एक खुशी के लिए, कहां से चले हम कहां आ गए,
कभी कभी लगता है पत्थरो की बस्ती में आ गए,,
अन्जू