मैं और मेरे अह्सास
कोरा काग़ज़ हैं तो कोरा ही रहने दो l
उसे भी अकेलेपन का दर्द सहने दो ll
कई बार अल्फाजों की जगह पर l
दिल के जज्बात मुहँ से कहने दो ll
यादें बीते वक्त की लिख क्या करोगे?
आज खयालों का कारवाँ बहने दो ll
उसके उजलेपन की गरिमा रहने दो l
आन की सफेद चादर ही पहनें दो ll
सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह