मां सरस्वती वंदना।
नित उठ प्रातः काल करें तेरे पद वंदन।
दास करे अरदास तेरे चरणों में
होकर भाव विभोर ।
लगाए तेरे भाल तिलक चंदन
जय जय मां शारदे प्रणत नमन।
विनती करें तेरी चढ़ाएं श्वेत कमल
अरुणिम भोर।
बसंत पंचमी पर मन चाहे रंग ले पीला।
तन चाहे परिधान पहनने को पीला।
आम बौरा गए हैं कूके उपवन में कोकिला।
पक्षियों की चहचहाहट शुरू हो गई है
तोता करे टांय-टांय और कुतर कुतर कर
खाए अमरुद पीला पीला।
कृषक चले मन में उमंग भरे कि आ गया है
बसंत। ऋतु राज बसंत के आगमन पर
गा रहे हैं गीत नदियां और पर्वत।
कि हुआ अब भई शीत ऋतु का अंत।
तरु पल्लव झूम रहे हैं ले रहे हैं अंगड़ाई
अमराई में।
खुशियों के गीत गाने आई बच्चे बच्चियां और
सभी महिलाएं।
बाल किशोर नवयुवक और बूढ़े सब बसंत मेला
देखने चले हैं लेकर ढोल मजीरा और मृदंग।
सबके मन में नव पल्लवित उपवन की शोभा
बसी हुई है मनाएं हर्षोल्लास गावें शुभकामनाएं
बधाईयां होकर मद मत्त मगन मन भर उमंग।
नव स्वर नव मंत्र नव प्राण का मिला प्रकृति को
नवल प्रभात नवल सृजन सौगात ।
मुदित हुई है डाली डाली और पत्ते पत्ते हो रहा है
मलयानिल का आभास।
हे जग जननी विश्व संचालिनी मां सरस्वती
मां शारदे।
तेरे सम्मान में जग नत मस्तक हो गया है और
मांगे जग जगमग ज्यों पीत स्वर्णिम दिवस
बसंत पंचमी पर्व होता है ऋतुराज बसन्त का
वास दिग दिगंत हे मां शारदे।
कोटि-कोटि प्रणाम मां शारदे।
अकिंचन्य दासी अनिता तेरी कृपा से लिख रही है और आने वाले साल में फिर आए लिखने यही
कामना करती है । सलामती सबकी चाहती है जग
मंगल कामना के साथ रचना को शुभकामनाएं एवं बधाइयां देते हुए लेखनी को नमन करते हुए
विराम लेती है।
दंडवत प्रणाम स्वीकार करें हे मां शारदे।
जय हो मां शारदे।
-Anita Sinha