मैं और मेरे अह्सास
हुश्न की खूबसूरती आज जी भर के देखते हैं l
नज़रे बचाके महफिल में ठहर के देखते हैं ll
किस्मत पर भरोसा है दीदार ए यार होगा l
चलो थोड़ा सा और इंतजार कर के देखते हैं ll
काश खिड़की पर आ जाए खुली साँस लेने l
एक बार फ़िर से गली से गुज़र के देखते हैं ll
सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह