मैं और मेरे अह्सास
खामोशी से भी नेक काम होते हैं l
गूगें होते हैं उनके भी नाम होते हैं ll
जिंन्दगी की शतरंज बड़ी पेचीदी l
दिल से जुड़े रिश्ते बेनाम होते हैं ll
नज़रों से जाम पीने को मना है तो l
महफिल में हाथों में जाम होते हैं ll
सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह