छल-प्रपंच ने लिखी कहानी......
छल-प्रपंच ने लिखी कहानी।
चकरी खाती रही मथानी ।।
समझदार होते हैं कुछ ही,
मक्खन मिले अलग हो पानी।
कुछ स्वभाव के छलिया-कपटी,
उनकी आदत रही पुरानी।
भ्रष्टाचारी-राजनीति में,
सबको वंशी अलग बजानी।
राजनीति फिर भी कुछ बदली,
किस्मत सबकी रही सजानी।
आतंकों का सही ठिकाना,
उनको माटी-धूल चटानी।
पढ़ी-लिखी जनता है जागी,
गुजरी बातें सभी भुलानी।
मनोजकुमार शुक्ल मनोज