"बेटियाँ ही नहीं साहब,
बेटे भी घर छोड़ जाते है"
जो तकिये के बिना कहीं ...
भी सोने से कतराते थे...
आकर कोई देखे तो वो...
कहीं भी अब सो जाते है...
खाने में सो नखरे वाले..
अब कुछ भी खा लेते है...
अपने रूम में किसी को भी
नहीं आने देने वाले...
अब एक बिस्तर पर सबके साथ
एडजस्ट हो जाते है...
बेटे भी घर छोड़ जाते है!!!
घर को मिस करते हैं
लेकिन कहते हैं 'बिल्कुल ठीक हूँ'...
सौ-सौ ख्वाहिश रखने वाले...
अब कहते हैं 'कुछ नहीं चाहिए'
पैसे कमाने की जरूरत में...
वो घर से अजनबी बन जाते है
लड़के भी घर छोड़ जाते हैं।
बना बनाया खाने वाले
अब वो खाना खुद बनाते है
माँ-बहन-बीवी का बनाया
अब वो कहाँ खा पाते है
कभी थके-हारे भूखे भी सो जाते है
लड़के भी घर छोड़ जाते है।
मोहल्ले की गलियां,
जाने-पहचाने रास्ते,
जहाँ दौड़ा करते थे
अपनों के वास्ते,
माँ बाप यार दोस्त
सब पीछे छूट जाते है
तन्हाई में करके याद,
लड़के भी आँसू बहाते है
लड़के भी घर छोड़ जाते है।
नई नवेली दुल्हन,
जान से प्यारे बहिन-भाई,
छोटे-छोटे बच्चे, चाचा-चाची, ताऊ-ताई ,
सब छुड़ा देती है साहब,
ये रोटी और कमाई।
मत पूछो इनका दर्द
वो कैसे छुपाते हैं,
बेटियाँ ही नहीं साहब,
बेटे भी घर छोड़ जाते है |
लेखक: अज्ञात
बेटियां शादी करने पर पिता का घर छोड़ ससुराल जाती है।
अब तो बेटे भी आगे अभ्यास करने या पैसा कमाने पिता का घर छोड़ कर पराये प्रांत में,शहर में या विदेश में चले जाते है। अपने घर के मुकाबले वहां उनका कैसा हाल होता है यह विवरण दिया गया है।