घुटघुट कर जिना मेरे लिए ही क्यूँ
हर उंगली का निशाना मेही क्यूँ
नारी हुं मे अबला नही,
हर बार दुसरोके मुताबीक जिना मुजे ही क्यु ।
क्यु नही उड सकती मे इन खुली हवाओ मे
उडने से पहले ही मुजे गिराना क्यु
नारी हुं मे अबला नही,
हर बार दुसरोके मुताबीक जिना मुजे ही क्यु ।
क्यु रात भर नही चलसकती मे अकेली
हर रोक टोक मुजे ही क्यूँ
नारी हुं मे अबला नही,
हर बार दुसरोके मुताबीक जिना मुजे ही क्यु ।
खुलकर जिना, मोज मस्ती करना वो भी
मे लोगो के हिसाब से ही क्यूँ
नारी हुं मे अबला नही,
हर बार दुसरोके मुताबीक जिना मुजे ही क्यु ।
. Jumani bhagvati 👍