जो देखना छोड़ा तुम्हे इन आँखो से
तो किसे दिखाओगे ?
इन रंग बिरंगी बदलती तश्वीर को
किस पर आजमाओगे ?
हृदय भावरुप मे थे,हो जो
रूप तो अभी तकभाव सा
न समा पाया है |
तश्वीर से कितना भरमाओगे |
देखती हूँ फिर भी !
तुम्हे पीड़ा जो भाती है,
देखकर आँखे मेरी भर आती है,
कर देती हूँ अर्पण तुम्हे ही
शिकायत की थाली मे सजाकर |
कब तक चलेगा यह सब तुम क्या ,
जान पाओगे |
Ruchi Dixit