मैं और मेरे अह्सास
आज दिल में हलचल है l
हवाए महकती संदल है ll
हुश्न बेपर्दा हुआ शहर में l
चारो ओर खलबल है ll
ख़ुदाई छलक रहीं हैं l
चहरे का नूर असल है ll
महबूब की याद में सुन l
ताजा लिखी ग़ज़ल है ll
नसीब वाले है जिनकी l
याद आती पलपल है ll
१२-४-२०२२ सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह