मैं और मेरे अह्सास
लम्हो की कैद से निकलना नामुमकिन है l
दर्दों की कैद से निकलना नामुमकिन है ll
साथ जिएंगे साथ ही मरेंगे कसमें खाई थी l
वादों की कैद से निकलना नामुमकिन है ll
वो सुबह शाम, रात दिन बातेँ करते थे l
यादों की कैद से निकलना नामुमकिन है ll
३-३-२०२२
सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह