उंगली पकड़कर जीसे चलना सिखाया
घुमाया कभी खेत खलिहानो में
कभी भाई-बहन झूला संग झुले
कभी बाबा दादा के बाहों में!!
किशोर से योवन में जब आए तब्दीली
जबानी से बुढापा में बाबा की हुइ वृद्धि
हंसी खुशी सबके घर बसाया
कुछ दिन बीता जीवन हंसी खुशी!!
कुछ दिन और गुजरने पर
घर में मची खलबली
कभी तू .....कभी मैं.... (झगङा)
अब गूंजे हर गली गली!!
कुछ रिश्तेदारों के समुख
लोगों की भीड़ जुटी है भारी
बैठ गए सब आंगन में
बटबारे का माहौल बना जब
घर में कोलाहल की बारी!!
बिलख बिलख कर बाबा रोऐ
चौखट पर रोए माई
नजारा देख पिता की आंखों में
जलधारा गंगा की, फुट रही बारी बारी!!
बच्चों को पोशा व पाला
ना भेद किया न मनमानी
जब डाला जिम्मेदारी अपने कंधों के
खटक ने लगे हम...
बोझ लगने लगे हम भारी!!
जिनके मुख कभी चुम्मा करते थे हम
वो मुख हमे हरदम देते गाली
संग खाया एक संग कभी
अलग- थलग पड़े हैं थाली!!
-maya