" हर छोर जुड़ा है अन्दर से बाहर की कोई लोड़ नही , बाहर देखे दुनिया सारी अन्दर तू , कोई और नही | शब्दों मे जितनी बात कही भावों को लगती रही कभी , तुम शब्द नही तुम भाव मेरे , पढ़ते हो , आकर पढ़ लेना , फिर जैसी तुमको दिखूँ मुझे , वैसी मूरत मे गढ़ देना |"
-Ruchi Dixit