जरूरत न साधी तुझमे है ,
जरूरत से ऊपर है जरूरत अंतस की , बँधन हावी है मगर खींचता लड़ता है अंतस ही , मिटाने को आतुर है पीड़ा मरहम बनकर मगर चालाकियों से निकालता है अंतस ही , खाली सा लगता है कोना कभी ,कभी भरे का अहसास नही , भाग रही हूँ अंजान सड़कों पर , बिना मंजिल आगाज की , साये का पीछा करती शायद , अंतस के आवाज की |
-Ruchi Dixit