Hindi Quote in Poem by Umakant

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*समय पुराना था*
तन ढँकने को कपड़े न थे,
फिर भी लोग तन ढँकने का
प्रयास करते थे ।
आज कपड़ों के भंडार हैं,
फिर भी तन दिखाने का
प्रयास करते हैं
*समाज सभ्य जो हो गया हैं ।*

*समय पुराना था*, आवागमन
के साधन कम थे।
फिर भी लोग परिजनों से
मिला करते थे।
आज आवागमन के
साधनों की भरमार है।
फिर भी लोग न मिलने के
बहाने बनाते हैं ।
*समाज सभ्य जो हो गया हैं ।*

*समय पुराना था*,
घर की बेटी, पूरे गाँव की बेटी होती थी।
आज की बेटी ही पड़ोसी से ही असुरक्षित हैं ।
*समाज सभ्य जो हो गया हैं ।*

*समय पुराना था*, लोग
नगर-मोहल्ले के बुजुर्गों का
हालचाल पूछते थे ।
आज माँ-बाप तक को
वृद्धाश्रम में डाल देते हैं ।
*समाज सभ्य जो हो गया हैं ।*

*समय पुराना था*,
खिलौनों की कमी थी ।
फिर भी मोहल्ले भर के बच्चों के
साथ खेला करते थे ।
आज खिलौनों की भरमार है,
पर बच्चे मोबाइल की जकड़ में बंद हैं ।
*समाज सभ्य जो हो गया हैं ।*

*समय पुराना था*,
गली-मोहल्ले के पशुओं
तक को रोटी दी जाती थी ।
आज पड़ोसी के बच्चे भी
भूखे सो जाते हैं ।
*समाज सभ्य जो हो गया हैं ।*

*समय पुराना था*,
नगर-मोहल्ले मे आए
अपरिचित का भी पूरा
परिचय पूछ लेते थे ।
आज तो पड़ोसी का
नाम भी नहीं पूछते ।
*समाज सभ्य जो हो गया हैं ।*

*वाह रे सभ्य समाज*🙏🏻

Hindi Poem by Umakant : 111767562
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