मैं और मेरे अह्सास
बड़ी नजदीक से देखे है बदलते चेहरे l
परवाह नहीं चाहें जो हो पलटते चेहरे ll
चारो और बेशर्म होकर बने घूमते हैं l
गली नुक्कड़ यहां वहां भटकते चेहरे ll
आज बेपर्दा होकर महफिल मे आये हैं l
आशिक की झलक को मचलते चेहरे ll
सुबह शाम यहाँ वहाँ घूमते फिरते हैं l
दिल की तरफ प्यासे तरसते चेहरे ll
जो कभी भी किसी के नहीं होते वो l
रेत तरह अपनों के सरकते चेहरे ll
सखी
दर्शिता बाबूभाई शाह