*परस,परिणय,प्रणय,प्रियतमा,प्रीति*
1 परस
मानव परिणय में बँधे, मूक-प्रणय संवाद।
दरस-परस से कर रहे, दुनिया को आबाद।।
2 परिणय
मंगल-परिणय की घड़ी, फिर आईं इस वर्ष।
भगा करोना देश से, चहुँ दिश छाया हर्ष।।
3 प्रणय
प्रणय निवेदन कर रहा, मौसम बदला आज।
समय पर्यटन भ्रमण का, चलो देखने ताज।।
4 प्रियतमा
स्वागत में अब पाँवड़े, बिछा रहे नित छोर।
सुंदर लगती प्रियतमा, उठती प्रेम हिलोर।।
5 प्रीति
प्रीति-डोर में बँध गए, जो कल थे अनजान।
हाथों में अब हाथ ले, चलते सीना तान ।।
मनोज कुमार शुक्ल " मनोज "
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