मुहाजिर हो गये हम अब उस शहर के;
थोड़े अजनबी बनते गये उस नगर के;
मुसाफिर ही बनकर रह गये हम अब तो,
कभी निवासी हुआ करते थे जिस घर के;
आंखें मूंदकर भी पा लेते थे हम मंजिल,
आज कई मोड़ आ गये हैं उस डगर के;
सभी गली, मोहल्ले और चौराहें छूट गये,
दोस्त भी बिछड़ते गये हैं जीवन सफर के;
"व्योम"भी देखो रो रहा है हालात पे हमारे,
बस किस्सा बन गये हैं अब हम खबर के;
...© વિનોદ.મો.સોલંકી"વ્યોમ"
GETCO (GEB)