संक्रात
नभ उडे पतंग मन भर निजानंद में,
रहते जोर साथ अपने अनोखे अंदाज में।
बहती हवाएं सर्द के संगाथ में,
आकृति का ए पगरव खुला अंदाज में।
कलरवता अपनी उडती उडानमें
खीलरही एक सवार अनोखे अंदाज में।
त्योहार आया संक्रात का सजाये,
अपना उमंग जुम रहा सीमा संजाज में।
चगीी पतंग रंग बेरंग नभ में,
मस्ती गीत में जुमते जने शीत फजाज में।
मनजीभाई कालुभाई मनरव
मु बरोला गुजरात